Hindi Poem | अबला | ! 'अ'-'बल'-'ा' !

Hindi Poem | अबला  | ! 'अ'-'बल'-'ा' !

भोग-विलास के भूखे लोगों ने
फाङ के आंचल,जो जलाया है
देखों उसका टुकङा दहक रहा है
रूंधा हुआ तन उससे जल रहा है
अबला का 'अ' निकल रहा है
भूखो से लङने का बल मिल रहा है
उस वक्त, मुहँ को दबाया था, हाथों से
उस चिल्लाने से, आवाज ऊँचा उठ चुका है
अब गूंजेगा का तेरे कानों में
तुने डर दिखाया था,मुझको
लाने का बाजारों में
देख उतर चूकी हूँ ,बाजारों में
यँही करूँगी.....,
तेरी झूठी शान का निलाम, बाजारों में
तू खरीद सकता है चार कारिंदों को
न्याय के मंदिर को कैसे खरीद पायेगा
यहाँ बच भी गया तो, क्या !
समाज के आगे तेरा रावण जल गया
भुल हुई तुझसे, मुझको सिर्फ़ गौरी समझने की
मैं ही काली हूँ, ये तु भुल गया
बच तो जायेगा सब के सामने
अकेले में मेरे खौफ़ को कैसे भुलायेगा
सीता के चुप रहने ने,द्रोपदी को जन्म दिया
द्रोपदी के चीर ह्रन ने ,माहाभारत किया
अब कृष्ण को नहीं पुकारूँगी,
आंचल बढाने के लिए
छीन के आंचल, तुने रणचण्डी को जन्म दिया
मृत्युदण्ड बेसक़ तुझको नही मिला
पर देख ,अब आगे तु कैसे जियेगा
झुठी शान का, जो तुने लिबास पेहना था
उसको ही तेरा कफ़न किया ।
भोगा-विलास किया था जिस शरीर से
उसको ही तेरा क़फ़स (पिंजरा) किया।

-nisha nik''ख्याति''







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