कबीर दास

''कबीर दास'' जी जिनके दोहे आज भी समाज में बहुचर्चित और लोकप्रिय है। हमारे आस -पास हमें हर दूसरा व्यक्ति सुनते हुऐ मिल जाता है। कुछ दोहे तो जनश्रुति बन कर सभी के चुबान पर है।
'कबीर दास' एक ऐसा व्यक्तितव जी कभी गलत के आगे नहीं झुके और समाज में हो रही कुरितियों का सदा विरोध किया।
देखिये किन कटू शब्दों में समाज की कुरितियों का विरोध करते है.....
''बकरी पाती खात है ताकी कढी खाल।
 जे नर बकरी खात हैं तिनकौ कौन हवाल॥''

''पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहाङ।
 या तै तो चाकी भली पीस खाय संसार॥''

कबीर ने सभी वर्गों पर अपने शब्दों से व्यंग का तीखा कटाक्ष किया है।

 'कबीर दास जी' जिनका सार जीवन काव्य और आध्यातम को समर्पित रहा। कबीर ना सिर्फ कवि थे वो एक समाज सुधारक भी थे। उन्होने अपना सारा जीवन लोक कल्याण , समाज सुधारक और ब्रह्म नाम में बिताया।
उन्होने स्वयं को ईश्वर का कुत्ता कहा, देखियें इनकी ये पंक्तियाँ....
''कबीर कूता राम का मुतिया मेरा नाउं।
  गले राम की जेबङी जित खींचै तित जाउं''॥

कबीर ने सदा ही ब्रह्म आडम्बरों का विरोध किया है उन्होनें हमेशा सदाचार को ही महत्त्व दिया है । निर्बल को ना सताने की बात कहते हुऐ देखिये उन्होनें पंक्तियाँ कही है....
''निर्बल को ना सताईये जाकी मोटी हाय।
 मुई खाल की साँस सौं लोह भस्म हो जाय॥''

कबीर हमेशा जनकल्याण की बात कहते थे यही कारण है की कबीर ने जाती और धर्म से ऊपर उठ कर लोगो के चरित्र और गुणों को ऊँचा माना है.....
''बङा भया तो का भया जैसे पङ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागौ अति दूर॥''








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