Short love story
.....(short story).......
''''',,,,,पगली लङकी ,,,,,'''''
एक दिन यूँ ही.....दिन बीत गया । रात होने का इंतजार कर रही थी, पर रात को तो अपने समय से ही होना था । वो क्या है ना, समय को मतलब नहीं होता आपकी बेचैनियों से पर यहाँ बात तो कुछ और ही थी। रात होने का इंतजार और दिल में एक ख्याल, क्या ? ये सवाल तो अभी तक मेरे लिए भी बना था ,पर कुछ दिनों से हर रात रोज एक फोन काॅल मुझे आता।
ना ना बात ज्यादा देर नही होती थी पर कभी कभी घण्टों बात होती थी ।जिस रात मेरी उस फोन काॅल से घण्टों बात होती थी उस सुबह मैं खुद को बदली बदली पाती थी ।मुझे ख्याल आता की शायद इस फोन काॅल वाले को मुझ से प्यार है । पर अकसर ये एक गलतफ़हमी की तरह लगने लगता ,क्योंकि फोन हर रोज होता था ,कभी उसका कभी मेरा पर अकसर बातों का सिलसीला एक फीके चाय की तरह होता था।
ऐसा लगता मानो एक शुगर के मरीज की तलब मिटाने को बस हाथ में चाय का कप दिया गया हो , और वो उसा पी कर अपने दिल को तस्ली दे रहा हो।
खैर बात तों नही होती थी पर मेरी गलतफ़हमी अकसर दूर हो जाती।जिसे मैं प्यार समझती थी, वो प्यार तो नही था उसका ।
हाँ लगाव हो सकता है या कुछ और...क्योंकि यह फोन काॅल वही था जिससे मेरी शादी होनी थी । जब भी रातों की बाते ज्यादा बढ जाती मैं समझ जाती थी अब फिर से मुझे रोना है ।
हाँ यहाँ रोने की बात अजीब है पर सच है ।
मैं अकसर सोचा करती थी उम्मीदों से खाली दुनिया रंगीन हो सकती कोई अपना जिसे मैं अपना कहूँ वो रिस्तों से परे आपको एक रिस्ता दे सकता है। ''रिस्तों से परे एक रिस्ता '' वही जिसे सब प्यार कहते है और अकसर हर किसी की चाहत होती है, मेरी भी थी पर रिस्ते के साथ रिस्ते से परे जाना चाहती थी ।पर कहते है,कुछ बाते सोचने और कहने में अच्छे होते है ,बिलकुल ऐसा था कुछ यहाँ भी ।
अरे नहीं प्यार तो यहाँ भी था बहुत था पर...
शायद प्यार से पहले एक तङपता हुआ जिम्मेदार रिस्ता और एक अपनी ही सोच में डूबी पागली लङकी थी।
-nisha nik''ख्याति''
''''',,,,,पगली लङकी ,,,,,'''''
एक दिन यूँ ही.....दिन बीत गया । रात होने का इंतजार कर रही थी, पर रात को तो अपने समय से ही होना था । वो क्या है ना, समय को मतलब नहीं होता आपकी बेचैनियों से पर यहाँ बात तो कुछ और ही थी। रात होने का इंतजार और दिल में एक ख्याल, क्या ? ये सवाल तो अभी तक मेरे लिए भी बना था ,पर कुछ दिनों से हर रात रोज एक फोन काॅल मुझे आता।
ना ना बात ज्यादा देर नही होती थी पर कभी कभी घण्टों बात होती थी ।जिस रात मेरी उस फोन काॅल से घण्टों बात होती थी उस सुबह मैं खुद को बदली बदली पाती थी ।मुझे ख्याल आता की शायद इस फोन काॅल वाले को मुझ से प्यार है । पर अकसर ये एक गलतफ़हमी की तरह लगने लगता ,क्योंकि फोन हर रोज होता था ,कभी उसका कभी मेरा पर अकसर बातों का सिलसीला एक फीके चाय की तरह होता था।
ऐसा लगता मानो एक शुगर के मरीज की तलब मिटाने को बस हाथ में चाय का कप दिया गया हो , और वो उसा पी कर अपने दिल को तस्ली दे रहा हो।
खैर बात तों नही होती थी पर मेरी गलतफ़हमी अकसर दूर हो जाती।जिसे मैं प्यार समझती थी, वो प्यार तो नही था उसका ।
हाँ लगाव हो सकता है या कुछ और...क्योंकि यह फोन काॅल वही था जिससे मेरी शादी होनी थी । जब भी रातों की बाते ज्यादा बढ जाती मैं समझ जाती थी अब फिर से मुझे रोना है ।
हाँ यहाँ रोने की बात अजीब है पर सच है ।
मैं अकसर सोचा करती थी उम्मीदों से खाली दुनिया रंगीन हो सकती कोई अपना जिसे मैं अपना कहूँ वो रिस्तों से परे आपको एक रिस्ता दे सकता है। ''रिस्तों से परे एक रिस्ता '' वही जिसे सब प्यार कहते है और अकसर हर किसी की चाहत होती है, मेरी भी थी पर रिस्ते के साथ रिस्ते से परे जाना चाहती थी ।पर कहते है,कुछ बाते सोचने और कहने में अच्छे होते है ,बिलकुल ऐसा था कुछ यहाँ भी ।
अरे नहीं प्यार तो यहाँ भी था बहुत था पर...
शायद प्यार से पहले एक तङपता हुआ जिम्मेदार रिस्ता और एक अपनी ही सोच में डूबी पागली लङकी थी।
-nisha nik''ख्याति''
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