Short Story | Vo Kitab | वो किताब

Love Story | Vo Kitab |  वो किताब

रातों की शिकायत पर, मैंने फिर किताब खोली। पर इस बार किताब इश्क़ की नही, थोङी अलग उठा ली ।थोङी सवालों से भरी हुई ।
बात उस में बङी-बङी कही गई है।जिन्दगी जीने के तरीके की बात कही गई है,।पर इश्क़ की कहीं बात नहीं की गई है। मैं हैरान हूँ, थोङी परेशान हूँ, बातें सब आम ही कही गई है उस किताब में ,पर ना जाने क्यों वो किताब मुझे बुद्धिमानों की जाना पङती है जो की मेरी समझ से बाहर है । फिर भी मैं उसे पढती रही ये सोच कर इश्क़ की मिठास ना सही इस में जिन्दगी जीने का सलिका समझ आ जायें । पर सच कहूँ इस किताब को पढने से पहले एक बार ख्याल आया ,रख दूं इसे पर ग़ालिब का एक शेर मेरे ज़हन में आ गया शेर तो मुझे ठीक से याद नही पर कुछ इस तरह से है...
''इश्क ने हमें निक़मा किया ग़ालिब,
नहीं तो आदमी हम भी काम के थे''
बस यही याद कर इश्क़ से थोङी दूरी करते हुऐ उस किताब को पढना सुरू किया ।
अब क्या कहे....
हमारी हालत तों ये थी
मानों खुदा से बस इतनी फ़रियाद थी, इस किताब को बढने की हिम्मत दे ।
मानों मेरे हाथ में किताब नही एक बम था जिसे समझ कर मुझे उसे फटने से रोकना था ।
हे भगवान ये इश्क़ भी क्या- क्या काम करवात है पहले शायर और फिर समझदार बनाता है। लगता है इस किताब को पढ कर समझ तो आ ही जाऊँगी। पर इस बार भी बुरी किस्मत ,
उसके एक काॅल ने मुझे समझदार होने से रोक लिया ।
ग़ालिब ने सही कहा है इश्क़ ने हमें निक़मा किया, और इस फोन ने खुब साथ निभाया
फिर से वो किताब अधूरी रह गई।

-nishs nik"ख्याति"

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