लेख -किसान
विषयः-किसान....
हम पढे लिखे तबके के लोग वाह !!!
जब भी किसानो की बात करते है तो बङे-बङे भाषण देते है लेख लिखते है...
जय किसान का नारा देते है...
किसान को हम पालनहार कहते है
हम वही रटी-रटी चार पांच बाते कहते...
पर वास्तविक्ता से यथार्थ से बहुत दूर रहते
यूँ तो हमारे देश की सरकार बङे-बङे वादे हमेशा करती है पर उन वादो से नीचे तबके के और कम जोत के किसानो को मिलता कुछ नही...
और आज भी बहुत से किसानो की हालत ये है की वो कर्ज के कारण अपने खेतो को बेच कर उन में मजदूर बन चूके...
जो किसान सब का पालनहार कहलाता है वो खुद गरीबी में पैसो और अनाज की कमी से भूखे सोता है...
आज भी हमारे देश में किसानो की हालत बहुत दयनिय है...
आजादी से पहले जो उनकी हालात थी और जो अब है उस में खासा अंतर नही...
सिर्फ इतना अंतर है की पहले विदेशी जुलम कर के अपनी बात मनवाते थे....
और अब सरकार उनकी नीतियो को अपना कर जुलम करती है....
हमारे देश के नेताओ की नीति वाह ! जबाब नही वो विदेशी नीति को तो अपनाती है पर वही तक जहाँ तक व्यापारि तबको को फायदा मिले....
और जहाँ किसानो की बात आती है वहाँ उसकी आँखे बंद हो जाती है...
इस देश के नेता हरितक्रांति के लिए विदेशी नीति अपना सकते तो जो वो देश अपने किसानो को सबसिडि देते है वो नीति क्यो नही अपनाते...
सायद यहाँ के नेता व्यापारि लोगो को पैसे से पेट भरने की आदत हो चुकी है...
इसलिए उन्हे अनाज का और किसान का मतलब समझ नही आता....
यूँ तो हमारे देश में बहुत सी चीजे बीगङी है
पर आजादी के पहले से लेकर अबतक जो सुधरी नही वो किसानो की हालता...
हम पढे लिखे तबके के लोग अकसर इस विषय से दूरी बनाते है और सिर्फ शहरीकरण की बाता करते है....
सोचते है पैसे से हमें अनाज तो मिल ही जाता है और इस वास्तविक्ता से मुँह फेर लेते है
ऊपज ही नही होगा तो पैसो से भी अनाज नही मिलेगा...
और किसान खेती नही करेगा खेती की जमीन नही होगी तो ऊपज भी नही होगा...
हम शहरीकरण और राजनीति में ये भुल चुके है की भारत एक कृषिप्रधान देश है और किसान करता धरता....
.....nisha nik''ख्याति''....
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