कविता - अब याद कर
,,,,''''कविता - अब याद कर'''',,,,
रात अंधेरी
निशा कि छटा हट चुकी है
सूरज कि रोशनी लिए
दिन दस्तक दे रहा है
पहर-पहर,बांस-बांस,हर-पल,तिल-भर
सूरज ऊपर चढता जा रहा है
अब याद कर!
कर्मों के मनोहर गीत को
अब याद कर!
ईश्वर के प्रतीक को
फिर से निरंतर चल पथ पर
आलस को ठोकर दे कर
बांध आलस कि रस्सी को
अपने बिस्तर पर
पैरों पर चप्पल पेहन अपने मेहनत के
और लग अपने कर्मों पर
अब याद कर!
....Nisha nik(ख्याति)....
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