कविता - प्रेम-द्वन्द


,,,'''''कविता - प्रेम-द्वन्द''''',,,

लङकपन के चले जाने से
यौवन का एक दरवाजा खुला
आहट, उस में से
एक रोशनी आँखों पर लगी
आँखों पर तेज चमक
और वो चौंधिया गई
बस एक क्षण का विलम्ब
और वो रोशनी मन को भा गई

अंदर कुछ था, जो विचलित था
उस रोशनी से उन्मुक्त होकर
थोङा डरा -डरा सहमा था
अपने ही किये प्रवृतियों पर
थोङा संकोच था
मधुमास में किया जो प्रणय
उसमें अब नजर आता दोष था

अरूण कि लालीमा,
और तेज रोशनी में
अपनापन किस में ज्यादा था
कहना थोङा मुसकिल था
फर्क करना कठिन हो गया
चुन्ना और भी मुसकिल हो गया
कुछ कमियाँ लालीमा में नजर आती
तो कुछ कमियाँ तेज रोशनी में
मेरे समझ से परे, ये द्वन्द क्या था ।

....Nisha nik(ख्याति)....


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