कविता- पापा मुझको पढने दो....


  ''''कविता-पापा मुझको पढने दो'''

   '''बेटी पढाओ,बेटी आगे बढाओ'''

पापा मुझको पढने दो,
मुझको आगे बढने दो।
आई हूँ दुनिया में, मैं अबोध सही,
पर अबोध ना मुझको रहने दो
पापा मुझको पढने दो,
मुझको आगे बढने दो।

पापा डरो मत, के मैं घर का काम ना करूगी
कलम के साथ पापा, मैं वो भी देख लूँगी
अपने ज्ञान से, अपनी सोच को उङान दूँगी
कलम की ताकत से,बेटा बन मैं आपको थाम लूँगी
पापा मुझको पढने दो,
मुझको आगे बढने ।

वक्त आयेगा जब पापा,मैं अपने हाथों में लाल चूङियाँ भी डाल लूँगी,
अभी मेरे हाथों में कलम को सजने दो
वक्त आयेगा जब पापा,मैं नंद को अपनी सहेली कहूँगी
अभी मुझको किताबों से दोस्ती करने दो
पापा मुझको पढने दो,
मुझको आगे बढने दो।

पापा, पंख खोलने कि इज्जात आप मुझको दे दो
आश्मा नापू मैं अपने पंखों से आप मुझको कह दो
मेरी दुनिया सिर्फ ये चार दिवारी नहीं,
पूरी धरा समेट लूँ, मैं अपने ज्ञान से,
पापा आप मुझको ऐसा वर दो
पापा मुझको पढने दो,
मुझको आगे बढने दो।
....nishanik(ख्याति)....



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