Respect a woman | Poem in Hindi | औरत हूँ
औरत हूँ
उसने कहा था!
औरत हूँ!
मैं अंगारों से नहीं डरती
दिन-रात आग की चपेटों से,
अंगुलियां जलती है
इसलिए जलन से भी नहीं डरती
अपनों की याद आ जाये तो,
याद करने से भी नहीं डरती
आदत उस दिन से हो गई,
ठोकर लगने के बाद
एक आवाज पलट कर नही मिलती
अब तो चोट पर,
आह! तक नहीं निकलती
बोझील दिल को
और बोझील करने से भी नहीं डरती ।
औरत हूँ!
शिसकियां बाहर निकलने से, डरती हूँ
अकसर पानी की शोर में रहती हूँ
दिन-रात थोङी-थोङी उलझी रहती हूँ
कोई काम पूरा नही करती हूँ
अपनों के साथ के इंतजार में
अकसर अकेली रहती हूँ
औरत हूँ!
सारी गलतियाँ खुद करती हूँ ।
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